पत्ता भी हिलता है तो , उसी के हुकम से …………..
अधिकार है हमारा , खुद ही के कर्म से , …………..
मिलता है फल तेरे ही कर्म की नियत से …………
आदमी जीता अपने – २ विकारों से…………..
घटनाएं घटती है , हुकमें मंजूरे खुदा से …………..
चाँद – तारे भी तू ही उगा रहा है ………….
रोशन है ये जहां हमारा ,…………
होता सब कुछ तेरे ही रहमों कर्म से ………….
है सत्तापति एक ही , जो पूरा ब्रह्माण्ड चलारहा है …………
सिर्फ तेरा ही घर नहीं ,…………
वो तो जीव – जंतु सभी को चला रहा है ……………….
देता है वो जिसे भी सत्ता , ……………
मिलती सत्ता उसे उसी के हुकम से ……………..
रखना याद इतना , है ये सत्ता उसी की ,………….
तू भी जीता है उसी के रजा से…
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