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ज़िक्र भी करदूं ‘मोदी’ का तो खाता हूँ गालियां अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ?? कोयले की खान लिखूं या मनमोहन बेईमान लिखूं ? पप्पू पर जोक लिखूं या मुल्ला मुलायम लिखूं ? सी.बी.आई. बदनाम लिखूं या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ? शीला की विदाई लिखूं या लालू की रिहाई लिखूं ‘आप’ की रामलीला लिखूं या कांग्रेस का प्यार लिखूं भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ या प्रशासन बेकार लिखू ? महँगाई की मार लिखूं या गरीबो का बुरा हाल लिखू ? भूखा इन्सान लिखूं या बिकता ईमान लिखूं ? आत्महत्या करता किसान लिखूँ या शीश कटे जवान लिखूं ? विधवा का विलाप लिखूँ , या अबला का चीत्कार लिखू ? दिग्गी का’टंच माल’लिखूं या करप्शन विकराल लिखूँ ? अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू, या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू? दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखू या टूटे हुए मंदिरों का हाल लिखूँ ? गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ? जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ? नेताओं का महंगा आहार लिखूं या 5 रुपये का थाल लिखूं ? लोकतंत्र का बंटाधार लिखूं या पी.एम्. की कुर्सी पे मोदी का नाम लिखूं ? अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं” 
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